मेरी ज़िन्दगी पे एक कविता


ज़िन्दगी तो मेरी  एकदम सुलझी  हुयी  सी है ..
कुछ ज्यादा ही  सीधी सादी  सी ..
एक  सीधे  रेशम  के  धागे  सी ..
जो  हवा  के  साथ  उड़ता  है ;
जिसमे  नहीं  पड़ा  कोई  फंदा  या  कोई गाँठ ...
बह रही हवा के साथ मानो  दूंढ  रहा  हो  अपना  बंधन  ..
मेरी  ज़िन्दगी  एक  सीधे  बिना  उलझे  धागे  सी !

जैसे हवा  में  गिरता एक पंख  का  टुकड़ा ...
न  तो  उड़  सकता  और  न  गिरता  जमीन  पे ..
बहता  रहता  अपनी  हलकी  सी  काया  लिए ...
चढ़  जाता  किसी  भी  फूंक  की  सवारी !

जैसे  पेड़  पे  एक  सूखा  पत्ता ..
जो  अटका  है  एक  सूखे  हुए  सिरे  से ..
अपने  वजूद  से  अलग  होके  भी
जुड़ा  है  किसी  जोड़  से ..
या
एक  ढलान  पे  लुड़कता  हुआ  पत्थर ...
झरने  के  पानी  सा  बहता...
किस  राह पे  जायेगा  वो ..
या  रुक  जायेगा  किसी  तने  से  टकरा  के ..

या  फिर  एक  पानी  की  बूंद  सी ..
जो  चली  थी  बादल  से ...
एक  अनजानी  सी  राह  पे ;
उड़ेगी  हवा  के  साथ  या  पहुंचेगी  ज़मीन  पर ...
गिरेगी  किसी  पत्ते  पे  या  मिलेगी  समंदर  से ...
बनने  को  फिर  से  एक  बूँद ...कभी पानी से भाप .. कभी  भाप  से  पानी   !
मेरी ज़िन्दगी!!

(c) प्रदीप सिंह  

2 comments:

  1. ज़िन्दगी तो बस जीने के लिए है ...
    पर नहीं बहने को यूँ ही हवा के साथ ;
    मैं पंख अपने फैलाता हूँ ...
    उस उड़ते हुए हंस की तरह ..
    जो जा रहा है ..सूरज की ओर ... खोज में एक नए बसेरे की ..
    और नहीं रहेगा वो अकेला ...इस लम्बे रस्ते भर .
    मिलेंगे साथी बनाने को हमसफ़र उसे ...
    सफ़र को करने और सुहाना ...
    पहुच के मंजिल पे जिसे ..फिर से एक नया मोड़ है पाना !!

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  2. very well written too good!

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