ek aur kavita

कुछ करो नया, कुछ करो नया
कुछ नया रंग फ़िर भरो जरा,
फ़िर कुछ बिजली सी चमकाओ
तूफ़ानो सा फिर चलो जरा।

कुछ बात व्यंग से निकली थी
तुम बात नई फिर करो जरा,
होते होते जो रह गयी थी
उस विपदा का हल करो जरा।

कुछ कहने वाले कह गये थे
कुछ हमसे भी तुम सुनो जरा,
जो कहते सुनते रह गयी थी
उस बात मे दम फिर भरो जरा।

कुछ अजब रंग की चालों से
ये जीवन गाथा भरो जरा,
कुछ देर अभी तुम और रुको
पग धरती पर रहे धरो जरा |

आकाश उमड़ कर आया है
जीवन का सागर लाया है,
इस वर्षा मे तुम भीग डूब
जीवन मे रस फिर भरो जरा।

कुछ आशायें बाकी हैं अभी
कुछ देर अभी दम रखो जरा,
सूरज बस उगने वाला है
निज ध्येय को जाके छुओ जरा।

-प्रदीप